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Showing posts from May, 2023

मैनर्स

 सौभाग्य से मुझे एक बड़े विश्वविद्यालय  के  अतिथि गृह में प्रवास का मौका मिला। खूबसूरत परिसर एक से उच्च शिक्षित प्रोफेसर इन सब का सानिध्य पाकर मैं अभिभूत हो गई। प्रवास का प्रथम दिवस भोजन के लिए मैं भोजन गृह की ओर गई। रात का समय था इसलिए या लोग ज्यादा नहीं आए जो भी वजह  रही  हो वहां मुझे एक टेबल पर केवल तीन महिलाएं दिखाई दी जो साथ में डिनर कर रही थी। मैंने भी चुपचाप प्लेट में खाना लेकर दूसरे टेबल पर खाना शुरु किया। अभी उन महिलाओं की बातचीत सुनाई दी ।बात टेबल मैनर्स से लेकर देश विदेश, विषय से संबंधित सारे ज्ञान, घर परिवार, मोबाइल से वीडियो कॉल सब कुछ एक साथ चल रहा था साथ ही पूरे वातावरण के शांति में साफ-साफ सुनाई दे रही थी उनकी प्लेट, चम्मच और कटोरियों की खटर पटर जो की इतनी ज्यादा थी  जो कानों को अच्छी नहीं लग रही थी। बातों का सिलसिला भी लगातार जारी था जैसे उनकी बातों और प्लेट चम्मच की प्रतियोगिता हो रही थी कि ज्यादा शोर कौन कर सकता है? पर इस प्रतियोगिता में जीता कौन यह तो नहीं बता सकती क्योंकि तब तक मैं खाना खाकर उठ  चुकी थी पर जाते-जाते भी मुझे उनकी आवाज तथा उनके चम्मच , कटोरी प्लेट की

देवी

  चौदह वर्षीय रहीम दौड़ता हुआ सलमा के कमरे में आया। "अम्मा - अम्मा! बाहर पुलिसवाले आये हैं और बड़े साहब है तुम्हारा नाम सबसे पूछ रहे हैं।" सलमा सोचने लगी, वह रंगीन दुनिया तो कब की  छोड़ आयी है। अब तो जवानी भी नहीं बची। मुझे अब यहाँ कौन पूछ रहा है! बीस साल से ज्यादा हो गए....  आखिरी बार रेशमा ही आई थी रहीम को उसे देने के लिए जिससे उसे कोठे की बुरी हवा न लगे।  बच्चे का हाथ पकड़ाकर वह हमेशा के लिए दुनिया से रुखसत  हो गई। तब से लेकर आज तक न सलमा ने कभी उन  गलियों का रुख किया  था न कोई उसके पास आया। अब अचानक से कौन आ गया? इन्ही ख्यालो के उधेड़ बुन में सलमा  को एक आवाज़ ने जैसे नींद से जगा दिया।   "सलमा जी आप ही का नाम है ?" एक तीस वर्षीय युवक पुलिस की वर्दी में पूछ रहा था। सलमा ने घबराते हुए स्वर में कहा.. जी, मै ही सलमा हूँ पर मैंने कुछ नहीं किया।   युवक ने एकदम से उसके पैर छु लिए। सलमा हड़बड़ा गयी कि ये क्या हो रहा है! युवक ने उसे सँभालते हुए कहा, आप उम्र में मेरी माँ जैसी हैं। सुना था, कोठेवाली घर तबाह करती हैं पर अगर आप न होतीं तो आज मेरी माँ जिन्दा न होती.....मैं यहाँ न होत

हैसियत

                                           अरे तुमने इतने महंगी ड्रेस ख़राब कर दी " मीना जैसे उबल सी गयी थी। जिसमे सबसे ख़राब था तुम्हारी हैसयित भी है इस तरह की ड्रेस खरीदने की , तुम्हारी पांच महीने की तनख्वाह भी कम पड़ जाएगी समझे " वरुन सर झुकाये सब चुप चाप सुन रही था , क्योंकि उसके हाथ से काफी   छूटकर मीना के ड्रेस पर गिर गई थी और वह बस गुस्से में तिलमिला गई थी । सब बोलने के बाद भी उसका दिल ठंडा न हुआ तो उसे जॉब से निकलवाने की धमकी भी दे डाली , जानता नहीं है तू नहीं मै कौन हूं ?   डी. एम. की वाइफ हूँ डी. एम. की यहाँ से तो जाएगा ही , पूरे   शहर   में कही नौकरी नहीं मिलेगी   कैफे के सरे लोग इक्क्ठे हो गए .   कैफे का मालिक भी मीना को शांत करने की कोशिश में था. पर सब नाकामयाब।   कोई समझ   ही नहीं पा रहा था की अब क्या करे , तभी मीना का पति विवेक वहाँ आ गया , वह भीड़ को देखकर कुछ समझ पाता , तभी उसकी नजर वरुन पर पड़ी और उसने आश्चर्य से पुछा , अरे वरुन तू यहाँ कैसे , इतने दिनों से तू कहाँ था कितना ढूंढा पर तेरी   कोई ख़बर ही नहीं ,   मैंने कॉलेज के बाद फिर पर कही तेरा कही पता

देवता

 अरे !तुम अभी तक तैयार नहीं हुई ? वो लोग बस आते ही होंगे नीता ने आश्चर्य से कहा पर मुझ पर तो जैसे किसी के आने से कोई उत्साह ही नहीं होता और पता नहीं क्यों एक के बाद एक न जाने कितने आ चुके और स्पष्ट ना कहकर तरह-तरह के बहाने बनाकर मना कर दे देते लेकिन असली कारण था उनकी कभी न मिटने वाली या जो कह सकते हैं कि दहेज का दानव सामने आ ही जाता।महान होने का ढोंग करने वाले बात को सीधी तरह से ना कह कर कभी  सामाजिक व्यवस्था  कभी अन्य तरह-तरह की बातें करते थे और हर बार मेरी नफरत ऐसे लोगों के लिए बढ़ती ही जाती मेरा मन जैसे विद्रोही सा हो गया था कि बस अब और नहीं पर घरवालों की उम्मीद शायद अभी नहीं टूटी और हर बार की तरह आज भी एक बार फिर वही सब दोहराया जाना था मन में विचारों की आंधियां चल रही थी आखिर कब तक ?तभी नीता ने जैसे नींद से जगा दिया '' सपने बाद में देखना अभी तो तैयार हो जाओ'' कहते हुए खिलखिलाकर कमरे से बाहर चली गई और ना चाहते हुए भी उस दिखावे का हिस्सा बनने के लिए मुझे जैसे खुद को तैयार करना पड़ा। कमरे में लड़के की मां ,मामा और लड़का खुद था। सुना था सरकारी नौकरी में है और उसको देखते

कुछ खास

                                           कुछ खास वह दिखने में सौम्य हंसमुख थी, लेकिन काम के प्रति उनका समर्पण सीखने  को मजबूर कर देता हर व्यक्ति जो उनसे मिलता उनका मुरीद हो जाता मैं खुद को भाग्यशाली मानती हूं कि मुझे कुछ दिन उनके साथ काम करने का अवसर मिला ।बहुत कुछ सीखा उनसे। एक  दिन मन बहुत उदास था मैं पढ़ी-लिखी लेकिन कुछ खास न कर पाने का मलाल था, यही उदासी का भाव लेकर मैं उनके सामने आ गई और काम करते करते अचानक से पूछ लिया , मैडम सबमें  कुछ खास होता है पर मुझ में क्या खास है मुझे तो समझ नहीं आता। काम करते करते अचानक से उनकी दृष्टि मुझ पर ठहरी शायद मेरी उदासी उससे छुप ना सकी थोड़ी देर  रुक कर उन्होंने कहा,  कितनी भावनाएं हैं आपमें और जब आप लिखती हैं तो सारी भावनाएं हर किसी का दिल छू लेने  की क्षमता रखती  है मां सरस्वती ने लेखनी  का आशीर्वाद दिया है आपको,। उनकी यह बात सुनकर सारी उदासी जैसे गायब सी हो गई और हौसलें ने फिर से उड़ान भर ली।तब से आज कलम को हथियार बना  जिंदगी में कुछ खास ना कर पाने का मलाल खत्म किया और आज  जब मेरी पुस्तक को लेखन का अति विशिष्ट पुरस्कार मिला तो लोगों की ताली