मालिक
'बेटा ऑफिस जा रहे हो? ' 'क्या माँ तुम्हे दिखाई नहीं देता? , हर समय कुछ न कुछ बोलती रहती हो ' रोहित झल्लाते हुए बोला। ' बेटा मेरी दवा ख़त्म हो गयी है वापसी में लेते आना ' ' अरे अभी परसों ही तो लाया था ''वो तो खाँसी की थी बेटा , अभी घुटनो में बहुत दर्द हो रहा है ' 'क्या माँ , कभी ये कभी वो , तंग आ गया हूँ 'रोहित की बात सुनकर माँ दुखी होकर बोली 'बेटा मै क्या जानबूझकर तुम्हे परेशान करती हूं ? ' जब तुम छोटे थे तो कितना परेशान करते थे। पर मैंने ही हर नाज उठाये '' माँ मै कितने साल छोटा था ' तुम बच्ची नहीं हो , खुद ही कर लिया करो ये सब ' यह कहकर वह झल्ला कर ऑफिस चला गया। पड़ोस की बालकनी में खड़ी सुधा को ये बिलकुल अच्छा न लगा। लेकिन वो कर भी क्या सकती थी। पर उसने सोचा की वही ऑन्टी की मदद कर दिया करेगी। शाम को खाने की टेबल पर रोहित ने कहा ' माँ मै और निशा एक हफ्ते के लिए कही जा रहे है , तुम अपना देख लेना।