संस्कार
ट्रेन में बैठते ही सरोजिनी जी को यह चिंता सताने लगी कि नई बहू का संस्कार कैसा होगा ? मॉडर्न खयालों वाली , नौकरी करती है उस पर से लव मैरिज वाली पता नहीं कैसी होगी ? द्विवेदी जी यानि कि सरोजिनी जी के पति उन्हें बार -बार समझा रहे थे कि बिना मिले किसी के बारे में कुछ सोचना गलत है पहले मिल लो पहले मिल ले नहीं ठीक लगा तो वापस आ जायेंगे। उनका बेटा जो कि दिल्ली में जॉब करता था उनसे कई बार उनसे कहा कि वह और उसकी माँ दिल्ली में आकर उसके साथ रहे पर उसकी माँ उसकी लव मैरिज से नाराज थी , वह नहीं जा रही थी। आखिर बेटे की जिद के कारण उन्हें झुकना पड़ा और वह पति के साथ दिल्ली आयी पर पूरे रास्ते उन्हें जीन्स वाली बहू के आचरण पर उसके व्यवहार पर उन्हें शक ही था। शंकित मन से वह ट्रेन से उतरती है जहां उनका बेटा बहु साथ ही पोता भी उनके स्वागत के लिए पहले ही खड़े थे। सब ने झुक कर उनके पैर छुए पर सरोजिनी जी बहू का पहनावा देखकर चिढ सी गयी। भारी मन से उन्होंने घर की ओर कदम बढ़ाया। घर पहुंच कर उन्होंने देखा कि घर तो बहुत करीने